Sunday, December 9, 2012


भजन-गजल 
मन को मेरे मोह गया तू साँवली सूरत सांवरिया रे 
कानो में रस मिसरी घोले कान्हा तेरी बांसुरिया रे 

और न अब कुछ देखूँ  मैं तो यह जग लागे बेगाना सा  
चारो ओर दिखे बस तू ही कर गया मुझको बावरिया रे 

प्रेम में तेरे मैं मनमोहन भटकूँ ऐसे सुध बुध खोकर
तेरे एक दरस को जैसे व्याकुल ब्रज की छोहरिया रे 

डूबा तेरे चाह में मोहन मैं कुछ ऐसे हे यदुनंदन 
भूल के जैसे तन मन अपना डूबे जल में गागरिया रे 

होऊं मगन मैं हे मुरलीधर  देख के तेरी लीलाओं को 
और न अब कुछ दिल ये चाहे नाचे बनकर पामरिया रे 

तेरा दर्शन नित दिन होवे तेरा ही श्रृंगार करूँ बस 
बैठ निहारूं तुझको लाला झलता जाऊं चांवरिया रे 

मंगल तेरा निशि दिन गाऊँ तेरा ही गुणगान करूँ मैं  
"राजीव" नाम रटूं बस तेरा शाम सबेरे दुपहरिया रे 

देखूं मैं जिस और सखी री सामने मेरे सांवरिया 

राजीव रंजन मिश्र 

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