Wednesday, December 12, 2012


ये मत पुछो उनके पिछे रात गुजारी हमने कैसे
पुछो मेरे घायल दिल से घात किया मिल सबने कैसे

पत्थर इस दिल पर रखकर चलते रहे अंगारो पर
गाज गिरी थी अरमानो पर संजोये अब सपने कैसे

चोट थी उनकी सख्त बङी और शीशे का दिल मेरा
क्या बतलाऊँ झेले हमने हैं जीवन में अङचने कैसे

उस संगदिल के क्या कहने जो चाक जिगर के कर डालेे
देख वो लेते काश पलट कर बहते आँखो से झरने कैसे

बिगङा कुछ भी नहीं अभी “ राजीव" सम्हल जा अब भी तू
जिनके दिल मे अहसास नहीं उनसे लङने और झगङने कैसे 

राजीव रंजन मिश्र 

No comments:

Post a Comment