गजल ३१
सत्त बाजब जौं आसाने रहितइ
मनुक्खताक नहिं माने रहितइ
सरल मोने सोचैत सभ सगरो
त कि सभ झूर झमाने रहितइ
देखि सुनि सभटा मोनक सोचल
कहै पयगण्ड कि जाने रहितइ
खटल रहैत अखाड़मँ त छूछ्छो
अगहन कि खरिहाने रहितइ
मेल जोल जौं राखिकँ चलैत सभ
जीवन में सब ओरियाने रहितइ
भाबी भबतब जौं नीके चाहैत त'
सभ मिलि एक्कहि प्राणे रहितइ
अपने दुःख सन बूझैत सभकँ
तखन लोकक कल्याणे रहितइ
लड़ल अपना में सभ दिन हम
से नहिं त कि अवसाने रहितइ
डाँरि पारि ने बइसी आबहुं कहि
जे जिनगी एक समाने रहितइ
"राजीव" गोय राखल सभ मोनक
सोचि सभ जौं एक्के ताने रहितइ
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१३)
राजीव रंजन मिश्र
No comments:
Post a Comment