लोक कहैत छै बड्ड महगाइ छैक
चारि टकामॅ त मनुख बिकाइ छैक
रहल ने कोनो मोल सतक आब त'
आइ लोकक त माय बाप पाइ छैक
जमाना खराब केहन आबि गेल यौ
याद ने रहै ककरो बाप भाइ छैक
लागल सभ एक दोसराकँ पाछू छै
बूझि ने परै जे कथिक लड़ाइ छैक
पूजा करैत देखि पिक्की पारैछ लोक
छाती फूला मुदा पाशीखाना जाइ छैक
"राजीव" ने जानि कोन जुग आबि गेल
सभ एक दोसरकँ लूझि खाइ छैक
(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-१४)
राजीव रंजन मिश्र
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