Sunday, December 9, 2012


देख जगत की रंगत को आँसू सा ढलते रहते हैं
सात सुरों के सागर मे हर वक्त मचलते रहते हैं

टीस कभी जब उठती है पीङा से कातर मन में
औरों के गम देख हमेशा संयत हो चलते रहते हैं

रखें निर्मल सोच अगर व बात विचार में शालीनता
फिर होनी-अनहोनी में भी इन्सान सम्हलते रहते हैं

जोर नियति पर नहीं किसी का क्या राजा क्या रंक
मगर लगन व मेहनत से तकदीर बदलते रहते हैं

तक़दीर नहीं बस तदबीर की बातें हैं यह सब प्यारे
जैसा कर्म व्यवहार रखें हम वैसे ही पलते रहते हैं

पलटें गीता कुरान बाइबल या ग्रन्थ साहिब के पन्ने
कर्म ही जीवन भाग्य नहीं निष्कर्ष निकलते रहते हैं  

है दृढ विस्वास यही“राजीव"दिल के हर कोने में
साथ दुआँए हो गर अपने हर संकट टलते रहते हैं
राजीव रंजन मिश्र 

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