Sunday, December 9, 2012


कभी लगें है फूल सरिस तो 
कभी बने हैं अंगारे ये आंसू 
जिवन के इस भाग दौड़ में 
करते हैं वारे- न्यारे ये आंसू 

हो घडी ख़ुशी की फिर भी तो 
आँखों में आ ही जाते हैं आंसू
गम के दौरां भी नैनो के रस्ते 
बादल बनके बरसाते हैं आंसू 

कभी किसी से मिलकर ये बहते 
तो कभी किसीके बिछड़ जाने से 
मूक जुबाँ से सब कुछ कह जाते 
आकर ये नित एक नये बहाने से 

कुछ लोगों का साथ इन्हें है भाता 
और कुछ तो बढ़ कर इन्हें बूलाते
निश्छल और निर्भय जीने वालों को 
जग में कम ही पाया है इन्हें रुलाते 

दुनिया देती आयी है मान सदा ही 
लोगों के बहते आँसू पीने वालों का
औरों के जीवन से दुःख दर्द मिटाके 
जीने वाले सहृदय वीर मतवालों का 

औरों को गम देकर जीने वाले ही  
खलनायक  हरदम से कहलाते हैं 
हम देखें अगर पलट के पन्नो को 
गीता कुरान बाईबल यही बताते हैं 

राजीव रंजन मिश्र

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