हम उस पीढ़ी के बेबस नुमाइंदे है
जिन्हें पर रहा है बदस्तूर निभाना
हमारे वास्ते है बेहद मुश्किल इस
संस्कार की दहलीज को लाँघ पाना
हम से पहले वाले भी खूब खुश रहे हैं
अपने बनाये वसूलों की सिमित जहाँ मे
हमारे बाद वालों की तो भला क्या कहने
उन्हें फुर्सत कहाँ कि चले आज कारवां में
हमारी तो जिंदगी है गुजरी जद्दोजहद में
कि उड़ सकें स्वछन्द हो खुले आसमान में
मगर संस्कार और तहजीब की चौखट को
लांघ कर जा ना पाये कभी हसरतें जहान में
मर्यादा कि दहलीज पार की थी सूर्पनखा ने
सुरक्षा कि चौखट लांघी थी जनकनंदिनी ने
लिप्सा से ग्रस्त हो चले थे कभी महर्षि नारद
इतिहास गवाह है कि क्या हुई थी इन्हें आमद
मर्यादा व संस्कार की चौखटें नहीं हैं सिमित
नारी,पुरुष,छोटे बड़े किसी खास के ही निमित्त
ये तो समदरसी हो सभी का करते हैं संचालन
हम पर है कि हम करें ना करें इनका अनुपालन
राजीव रंजन मिश्र
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