Sunday, December 9, 2012


हम उस पीढ़ी के बेबस नुमाइंदे है
जिन्हें पर रहा है बदस्तूर निभाना
हमारे वास्ते है बेहद मुश्किल इस
संस्कार की दहलीज को लाँघ पाना

हम से पहले वाले भी खूब खुश रहे हैं
अपने बनाये वसूलों की सिमित जहाँ मे
हमारे बाद वालों की तो भला क्या कहने
उन्हें फुर्सत कहाँ कि चले आज कारवां में 

हमारी तो जिंदगी है गुजरी जद्दोजहद में
कि उड़ सकें स्वछन्द हो खुले आसमान में
मगर संस्कार और तहजीब की चौखट को
लांघ कर जा ना पाये कभी हसरतें जहान में

मर्यादा कि दहलीज पार की थी सूर्पनखा ने 
सुरक्षा कि चौखट लांघी थी जनकनंदिनी ने 
लिप्सा से ग्रस्त हो चले थे कभी महर्षि नारद
इतिहास गवाह है कि क्या हुई थी इन्हें आमद 

मर्यादा व संस्कार की चौखटें नहीं हैं सिमित 
नारी,पुरुष,छोटे बड़े किसी खास के ही निमित्त
ये तो समदरसी हो सभी का करते हैं संचालन
हम पर है कि हम करें ना करें इनका अनुपालन
राजीव  रंजन मिश्र 

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