गजल-२८५
सीमान पर जे छै सिपाही
से देशकेँ बचबै सिपाही
छै प्रानकेँ बाजी लगौने
हँसिते गला कटबै सिपाही
हँसिते गला कटबै सिपाही
जे काटि दै बा कटि मरै छै
से वीर टा कहबै सिपाही
से वीर टा कहबै सिपाही
कखनो तँ मायक दूधकेँ आ
नै माटिकेँ लजबै सिपाही
नै माटिकेँ लजबै सिपाही
नित नागरिककेँ चैन भेटय
माहौल से बनबै सिपाही
माहौल से बनबै सिपाही
मोहताज रहि सद्भावनाकेँ
गुमनाम रहि जी लै सिपाही
गुमनाम रहि जी लै सिपाही
आभार नै राजीव अगबे
पहिचान से मांगै सिपाही
पहिचान से मांगै सिपाही
२२१२ २२ १२२
© राजीव रंजन मिश्र
© राजीव रंजन मिश्र
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