गजल-२७५
झौँसल मुहँ झाँपि राखी हम सभ
सभकेँ सभ पैघ पापी हम सभ
सभकेँ सभ पैघ पापी हम सभ
लीखब नै मैथिली दू आखर
ठोकी धरि बस छाती हम सभ
ठोकी धरि बस छाती हम सभ
बिसरल छी बोल आ भाषाकेँ
धरकटकें कान काटी हम सभ
धरकटकें कान काटी हम सभ
मिथिलाकेँ लोक छी मैथिल छी
आबहुँ टा मोन पारी हम सभ
आबहुँ टा मोन पारी हम सभ
आबो राजीव मैथिल मिलि-जुलि
मिथिलाकेँ गीत गाबी हम सभ
मिथिलाकेँ गीत गाबी हम सभ
२२२ २१२ २२२
© राजीव रंजन मिश्र
© राजीव रंजन मिश्र
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