गजल-२८७
जनता जनार्दनकेँ चिन्ता उपार्जनकेँ
बेहाल कैलक धुन पेटक समार्जनकेँ
बेहाल कैलक धुन पेटक समार्जनकेँ
सुनतै कथी आनक पलखैत ककरा छै
बचलै तँ काजे टा अगबे धनार्जनकेँ
बचलै तँ काजे टा अगबे धनार्जनकेँ
छै बाट धरमक जे सेहो कहाँ सुच्चा
सभ पाप हेतै धरि शिक्षा चिदार्पणकेँ
सभ पाप हेतै धरि शिक्षा चिदार्पणकेँ
लागल अनेरेकेँ सभ वाहवाहीमे
चाहत मुदा निकहा दिनकेँ पदार्पणकेँ
चाहत मुदा निकहा दिनकेँ पदार्पणकेँ
राजीव कलिकालक अजगुत असरि बाबू
हीरा बदलि सभ लेलक चीज कार्बनकेँ
हीरा बदलि सभ लेलक चीज कार्बनकेँ
२२१ २२२ २२ १२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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