गजल-३१०
गजलकेँ गीत कहि देता
अनर्गल प्रीत कहि देता
अनर्गल प्रीत कहि देता
दिगरकेँ फूसि आ अनढन
अपनकेँ जीत कहि देता
अपनकेँ जीत कहि देता
हुनक नै ठीक थिक किछुओ
कथीकेँ तीत कहि देता
कथीकेँ तीत कहि देता
चलत जे संगमे तकरे
रमनगर गीत कहि देता
रमनगर गीत कहि देता
ई मैथील श्रेष्ठ छथि बाबू
हमहिँ टा हीत कहि देता
हमहिँ टा हीत कहि देता
लिबेबै माथ तखने टा
अहाँ नवनीत कहि देता
अहाँ नवनीत कहि देता
करब राजीव किछु नवका
तँ बुरि छी मीत कहि देता
तँ बुरि छी मीत कहि देता
१२२ २१ २२२
©राजीव रंजन मिश्र
©राजीव रंजन मिश्र
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