गजल-३०७
मनुखकेँ जिंदगी की जिंदगी छै
कहै सभ थिक मनुख बुधियार प्राणी
मुदा ई बात की कनियो सही छै
रहल अछि जीबि सभ कहुना कँ जीवन
कथी ककरा गरज जे भेल की छै
उताहुल सभ सगर धरि भान नै किछु
कहत ई बात के जे की कमी छै
कतह राजीव गेलै बुधि मनुखकेँ
कथी लै शानमे सभ सदि घड़ी छै
१२२ २१२ २२१ २२
@ राजीव रंजन मिश्र
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