Thursday, September 4, 2014

गजल-३०७ 

कतहु रौदी कतहु उमरल नदी छै 
मनुखकेँ जिंदगी की जिंदगी छै 

कहै सभ थिक मनुख बुधियार प्राणी 
मुदा ई बात की कनियो सही छै 

रहल अछि जीबि सभ कहुना कँ जीवन 
कथी ककरा गरज जे भेल की छै 

उताहुल सभ सगर धरि भान नै किछु 
कहत ई बात के जे की कमी छै 

कतह राजीव गेलै बुधि मनुखकेँ 
कथी लै शानमे सभ सदि घड़ी छै 

१२२ २१२ २२१ २२ 
@ राजीव रंजन मिश्र 

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