Friday, September 19, 2014

गजल-३१८

अनुशासन हीन जीवन जीयब नै नीक गप
बुझबय ला खूब रास बाजब नै नीक गप

ई जानै छी अहाँ सभगोटे बढियाँ जकाँ
मजलिसकेँ शायरी बिनु राखब नै नीक गप

उरदूकेँ शायरी आ हिन्दीमे घोषणा
मैथिलीकेँ मंच परमे छाँटब नै नीक गप

जनता छै बुझि रहल सभ खेला हेर फेरक
अपने टा पीठ अप्पन ठोकब नै नीक गप

बजने राजीव बेसी लोको हँसबे करत
फुइसक सुर ताल परमे नाचब नै नीक गप

२२२ २१२२ २२ २२१२
©राजीव रंजन मिश्र 

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