राष्ट्रकवि रामधारी सिंह "दिनकर" याद करते हुए:
हे वीर दिया तुम जला रहे हो
इक चिंगारी बन लहलहा रहे हो
इक चिंगारी बन लहलहा रहे हो
औकात भला क्या रखे समंदर
गर नाविक स्वतंत्र हो बता रहे हो
गर नाविक स्वतंत्र हो बता रहे हो
हे रश्मिरथी हे उर्वशी रचयिता
नित सोये को भी जगा रहे हो
नित सोये को भी जगा रहे हो
रोटी की कीमत स्वतंत्रता नहीं हो
कहकर रोटी को हरा रहे हो
कहकर रोटी को हरा रहे हो
हर भारतवासी झुका रहे सर
सच्चे अर्थों में राष्ट्रकवि कहा रहे हो
सच्चे अर्थों में राष्ट्रकवि कहा रहे हो
२ २२२२ २ १२१२ २
©राजीव रंजन मिश्र
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