Thursday, September 25, 2014

गजल-३२२

बदलि रहल छै आब जमाना आर बदलतै देखब
शनै शनै व्यवहार बदलतै माथ निहुरतै देखब 

पघिल जहन छल गेल हिमालय पाबि किरन सुरुजकेँ
तहन किए नै मोन मनुखकेँ भाइ पघिलतै देखब 

जगा रहल चुचकारि प्रकृत ई गाबि पराती सोहर
भने बिलमि धरि एक समय ई लोक तँ जगतै देखब 

जनम दिवस पर राष्ट्रकविक शत बेर नमन छी हुनका
रहै कलममे मोसि भरल दिनकर तँ बिहुँसतै देखब

हुनक सही कहनाम छलै नै मोल चुकेतै रोटीक
रहत सदति खन वीर स्वतंत्रे दीप पजरतै देखब

उठा नजरि आ माथ चलथि धी चाहि रहल अछि मिथिला
बढा चढा दिअमान धिया सभ चान चहिरतै देखब

लखा रहल राजीव निकट ओ राति दिवस सुखकारी
गमकि उठत मिथिलाक नगर सभ गाम गमकतै देखब

१२१२ २२१ १२२ २११२ २२२ 
©राजीव रंजन मिश्र

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