गजल-३१७
बढ़ियाँ अहाँक आइ काल्हि रंग ढंग अछि
के किछु कहत ग' मूँह दाबि लोक दंग अछि
के किछु कहत ग' मूँह दाबि लोक दंग अछि
रंगल मिजाज भोर साँझ बेश अछि चढ़ल
सहकल अनेर मोन माथ अंग-अंग अछि
सहकल अनेर मोन माथ अंग-अंग अछि
सीखू अहाँ पचास राग-भास नीक गप
धरि मैथिली कहू कतेक अंतरंग अछि
धरि मैथिली कहू कतेक अंतरंग अछि
छी मैथिलीक से कपार तेज की कहू
हिंदी बघारि तारबाक लेल जंग अछि
हिंदी बघारि तारबाक लेल जंग अछि
हमरा अहाँ सनक उलाँक पूत भेल तैँ
राजीव मैथिलीक हाल भेल तंग अछि
राजीव मैथिलीक हाल भेल तंग अछि
२२ १२१ २१२१ २१ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र
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