Friday, February 15, 2013


नजर से जब नजर मिल जाय तो फिर शुरुआत होती है 
जिगर से गर जिगर मिल जाय तो फिर बात होती है 

समां रंगीन हो पुरकश और जवाँ दिलकश नजारें हों  
बेकाबू तभी तो यक़ीनन जालिम जज्बात होती है 

किसी को क्या खबर थी कि चांदनी रातों की किरणों में  
नहाकर पाकीजगी से हुस्न खुद एक कायनात होती है 

जुबां खामोश हो और धड़कने सिफारिश कर रही होती 
तभी तो यार दिन के उजाले में मुकम्मल रात होती है 

किसी के इश्क में हम गहराई से ही डूब कर "राजीव"
पता चलता हैं कि क्या भला रौनक-ए- हयात होती है 

राजीव रंजन मिश्र 

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