जरा सी बात क्या कह दो वो आपे से बाहर हो जाएँ
गुले गुलफाम जो कह दो वो अपने में शायर हो जाएँ
इंसानियत तो आजकल बिकती है चंद सिक्कों में
लूटा दो हाथ से पैसे हर कोई जवाहर हो जाएँ
सच बोलने की खफा क्यों करता है कोई आज के इस दौर में
ऐसा न हो कि उनके रहमो करम से बेवस व कातर हो जाएँ
जहाँ देखो वहीं एक हवा सी चली है बातों में सफेदपोशी की
बस एक मौका लगे जों हाथ तो सब "राजा" के बिरादर हो जाएँ
किसे पड़ी है आज कल भला इस देश और समाज की "राजीव"
सभी को सोचग्रस्त देखा कि बस कैसे दरिया से सागर हो जाएँ
राजीव रंजन मिश्र
गुले गुलफाम जो कह दो वो अपने में शायर हो जाएँ
इंसानियत तो आजकल बिकती है चंद सिक्कों में
लूटा दो हाथ से पैसे हर कोई जवाहर हो जाएँ
सच बोलने की खफा क्यों करता है कोई आज के इस दौर में
ऐसा न हो कि उनके रहमो करम से बेवस व कातर हो जाएँ
जहाँ देखो वहीं एक हवा सी चली है बातों में सफेदपोशी की
बस एक मौका लगे जों हाथ तो सब "राजा" के बिरादर हो जाएँ
किसे पड़ी है आज कल भला इस देश और समाज की "राजीव"
सभी को सोचग्रस्त देखा कि बस कैसे दरिया से सागर हो जाएँ
राजीव रंजन मिश्र
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