गजल ३२
जिनगी आइ कनेलक फेरसँ हमरा
भभकी मारि दुखेलक फेरसँ हमरा
जखने बीति चलै दिन ने किछु सुनलक
बिढ़नी काटि सतेलक फेरसँ हमरा
सभछै खेल कपारक मानल हमहूँ
बिधना नाच नचेलक फेरसँ हमरा
करनी मानि करय छी करतब हम धरि
सभतरि लोक डरेलक फेरसँ हमरा
किछु "राजीव" जहन मोनसँ सोचल
बुझना गेल झमेलक फेरसँ हमरा
मात्रा क्रम: 2221+1222+222
@ राजीव रंजन मिश्र
जिनगी आइ कनेलक फेरसँ हमरा
भभकी मारि दुखेलक फेरसँ हमरा
जखने बीति चलै दिन ने किछु सुनलक
बिढ़नी काटि सतेलक फेरसँ हमरा
सभछै खेल कपारक मानल हमहूँ
बिधना नाच नचेलक फेरसँ हमरा
करनी मानि करय छी करतब हम धरि
सभतरि लोक डरेलक फेरसँ हमरा
किछु "राजीव" जहन मोनसँ सोचल
बुझना गेल झमेलक फेरसँ हमरा
मात्रा क्रम: 2221+1222+222
@ राजीव रंजन मिश्र
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