Friday, February 15, 2013

 लोकतंत्र/ प्रजातंत्र

'लोकतंत्र' वह तंत्र है जिसमे,जनता ही शासक चुनती है
अपने सोच समझ के बल पर अपना किस्मत बुनती है 
लोकतंत्र को दोष न दें हम,तंत्र यही है सर्वोपरि सर्वोत्तम
जनता द्वारा जनता के हित जनता की शासन चलती है 

प्रजातंत्र की बातें करना मानो तब तक है बेहद बेमानी
अधिकार संग फ़र्ज़ निभाने की जबतक हमने ना ठानी 
पाँच साल रोते चिल्लाते और चुनाव में चुप हो बैठें घर 
चाहिए सब कुछ बनी बनायीं,अपनी है बस यही कहानी 

आँखों के सामने कुछ भी हो पर जुबाँ नहीं हम खोलेंगे 
पीठ के पीछे मुद्दा कोई हो,खुब जोड़ तोड़ कर बोलेंगे 
फितरत रही सदा सुनने की पीछे पीछे सबके चलने की
हाथ लगेगी जब मायूसी तो घड़याली आंसू सब रो लेंगे  

जिसने पाया बस देश को लूटा,यही एक बस मूलमन्त्र है 
हाल गजब है आज जगत की देखो कैसी यह प्रजातंत्र है 
सहते चुप रह अन्यायों को,करते हैं हर पल दोषारोपण 
चुनकर लाते खोटे सिक्कों को,कहते हैं कि हम स्वतंत्र हैं   

बाँट लिया है हमने खुद को,राजनीतिज्ञों के दलबंदी में 
कुछ बैठे इनके खेमे में तो हैं कुछ दौड़े उनकी झंडी में 
सत्ता इनकी हो या उनकी,हमें भला क्या हासिल होगी 
बारी बारी से लुटेंगे वो हमको राजनीति के गंदे मंडी में 

सजग सचेतन हो जाये हम,बेहतर यह सबके हक़ में है
प्रश्न उठाना नहीं है काफी,होशियारी समुचित हल में है 
लोक तंत्र के ढांचे में गर लोक रहें कर्त्तव्यनिष्ठ,जागरूक  
शासक क्या भगवान झुकेंगे,कमजोरी तो हम सब में है 

समय नहीं यह अकुलाने का,सच्चाई स्वीकार करें हम 
संगठित,संकल्पित हो हरेक जुल्म का प्रतिकार करें हम
लोकतंत्र की मर्यादा को समझें और इसको मजबूत करें 
वीर शहीदों का सपना "स्वर्णिम भारत" साकार करें हम 

राजीव रंजन मिश्र  
  


लोकतंत्र ओ तंत्र छी जाहि मे लोके शासक चुनय छै
अपन सोच समझदारी सए अपन भाग्यकँ बुनय छै 
लोकतंत्रकँ दोष ने दी हम,तंत्र यैह छी सबसँ नीकगर 
लोकक हाथे लोकक लेल लोकक शासन चलय छै 

प्रजातंत्रकँ बात करब,तखन धरि होयत बेकारहिं टा यौ 
अधिकारक संग बाँहि पुरयकँ जा धरि हम ने ठानी यौ 
कानब चिकरब सालो साल आर भोट दिन कोल्खी धरब
बैसल ठामे चाही सभटा,छी अपन सभकँ यैह पिहानी यौ

आँखिक सामने सभटा देखब मुदा मुंहसँ ने किछु बाजब 
पीठक पाछू ताल ठोकब आर सबसँ बेसी होशियार बनब
अछि पुरान ढाठी ई अपन,लोकक पाछा पाछा चलबाक
ठेस लागिकँ खसब पड़ब,झुठक दहो बहो कानब खीजब  

जकरे सुथरल देसकँ लुटलक,यैह एक टा मूलमन्त्र छी 
चलल केहन परिपाटी देखू,केहन विरल ई प्रजातंत्र छी 
चुप बैसल अतिचार सहब,करब सबहक टीका-टिपण्णी
चुनब सभटा मरलाहा नेता,छाती ठोकब हम स्वतंत्र छी  
      
बाँटल हम सब अपनाकँ,नेता सबहक झूठक गुटबंदी मे
किछु बइसल एक सामियाना तर आ किछु दोसर हंडी मे 
राज हिनक हो बा हुनकर,भेटत अपना की मूंगबा लडडू 
लुटता पाला बदलि बदलिकँ,फँसा बंझा सब धुरफंदी मे

जागी हम सभ चेती अपनाकँ,होयत नीक ई सबहक लेल 
सवाल करब टा ने बुधियारी,निदान करी भविष्यक लेल 
लोकतंत्र मे लोक रहल जौं,कर्तव्यनिष्ठ,चौंउचक सभ रूपे 
शासन की भगवानो झुकता,अपने चालि छी बुरिबक भेल 

समय थीक ने ई लड़यकँ,आबू सबहक सत्कार करी हम 
संगठित आ संकल्पित रूपे,मिथिलाकँ जयकार करी हम
ऊँच नीच केर भाब मिटाबी,सभ गोटे संगहिं संग धाबी
अभिलाषित 'मिथिला' राज्यक सपना साकार करी हम 

राजीव रंजन मिश्र   
    
    



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