Friday, February 15, 2013

गजल-27
खुट्टाक चारू कात आब श्रमजानू
अहाँ दौन करैत ने हक्कन कानू 

ने छैक कर्तव्यक सीमान कोनो यौ
चाहे ई बात अहाँ सहजे ने मानू


जे ख़टतै से पैयबे टा करतय
बाबू ई खाहियारल बात छी जानू


सत सभ दिन जितबे टा करत
बैसि अहाँ बस निशि वासर गानू


करनी किछु ने बाजल फट फट
छोडू ढाठी आब जुनि आर बखानू 


नब पुरनाक होइक समागम
सोचि विचारि नब बाट समधानू  


"राजीव" बुधियारक बानि यैह छै
ने धड़ खसाबू आ ने करेजा तानू


(सरल वार्णिक बहर,वर्ण-13)
@ राजीव रंजन मिश्र


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