गजल-३३
बुझि पऱल जे धुआँ उठल अहिठाँ
सुझि रहल के घिना रहल अहिठाँ
सुनि सकल ने मधुर गीत कोनो
फुकि चलल जे नुका छिपल अहिठाँ
फ़ुसि भखय आ अपन भरय सदिखन
सुधि रहल ने लुटा मरल अहिठाँ
झुकि खसल ने नजरि मुनल कखनो
उठि चलल जे जुआ जितल अहिठाँ
खुलिकँ "राजीव"ई कहब हरदम
मुँह देखल आ हवा बहल अहिठाँ
२१२२ १२२ १२२
@ राजीव रंजन मिश्र
बुझि पऱल जे धुआँ उठल अहिठाँ
सुझि रहल के घिना रहल अहिठाँ
सुनि सकल ने मधुर गीत कोनो
फुकि चलल जे नुका छिपल अहिठाँ
फ़ुसि भखय आ अपन भरय सदिखन
सुधि रहल ने लुटा मरल अहिठाँ
झुकि खसल ने नजरि मुनल कखनो
उठि चलल जे जुआ जितल अहिठाँ
खुलिकँ "राजीव"ई कहब हरदम
मुँह देखल आ हवा बहल अहिठाँ
२१२२ १२२ १२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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