गजल-१३४
अहाँ बिनु साँझ उदास रहल
हदासल मोन निराश रहल
हियाकें हाल पजोर सनक
दबल बड रास भड़ास रहल
बनल छल मोनकँ मीत सुरा
निपत्ता भूख पियास रहल
कहब ककरासँ सुनत त' हँसत
उताहुल लोक पचास रहल
मरल राजीव खहरि क' बुझू
त' जिबिते आब लहास रहल
122 211 2112
@ राजीव रंजन मिश्र
अहाँ बिनु साँझ उदास रहल
हदासल मोन निराश रहल
हियाकें हाल पजोर सनक
दबल बड रास भड़ास रहल
बनल छल मोनकँ मीत सुरा
निपत्ता भूख पियास रहल
कहब ककरासँ सुनत त' हँसत
उताहुल लोक पचास रहल
मरल राजीव खहरि क' बुझू
त' जिबिते आब लहास रहल
122 211 2112
@ राजीव रंजन मिश्र
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