गजल-१२७
आइ साँझ बड भारी बुझा रहल
फेर मोन बड बेकल बना रहल
बात बातमे लोकक कहल सुनल
हिय अनेर कारन छड़ पटा रहल
के सुनत ग' बैथा मोनकेर ई
टाहि मारि दुख बिरहा सुना रहल
ऐ उदास मोनक हाल के बुझत
ओलि सभकँ सभ सभतरि सधा रहल
साँच बाट चलि राजीव खसि पड़ल
मोन मारि बस धधरा मिझा रहल
२१२१ २२२ १२१२
@ राजीव रंजन मिश्र
No comments:
Post a Comment