गजल -१३२
कानि कानि शोणित नित बहल नोरकेर
यैह थिक पिहानी टा बचल लोककेर
यैह थिक पिहानी टा बचल लोककेर
संग साथ के ककरा रहल बेर काल
चारि शब्द झूठक ढोंग थिक शोककेर
चारि शब्द झूठक ढोंग थिक शोककेर
जीबएत सुधि नै लेत क्यौ भोर साँझ
धरि मरैत माँतर भोज तिलकोरकेर
धरि मरैत माँतर भोज तिलकोरकेर
दान देत बाभनकें भरत पेट जमिकँ
बाल बूढ़ बिलटल सुधि कहाँ टोहकेर
बाल बूढ़ बिलटल सुधि कहाँ टोहकेर
अंग अंग राजीवक शिथिल भेल हारि
लोक वेद रतुका संग छल भोरकेर
लोक वेद रतुका संग छल भोरकेर
२१२ १२२ २१२ २१२१
@ राजीव रंजन मिश्र
No comments:
Post a Comment