गजल -११८
घुरि फिरि ऐना नै निहारल करू
रूपक नै किस्सा बघारल करू
बाँचब नै नेहक त' मारल प्रिये
खंजर नै नैनक उतारल करू
सजि गुजि नित दिन दहाड़े अहाँ
अँतरी ने लोकक ससारल करू
बड मारुक ई केश कारी सघन
फन्दा नै एकर पसारल करू
नेहक टा राजीव मारल मतल
बिसरा नै प्रियतम गछारल करू
222 221 2212
@ राजीव रंजन मिश्र
घुरि फिरि ऐना नै निहारल करू
रूपक नै किस्सा बघारल करू
बाँचब नै नेहक त' मारल प्रिये
खंजर नै नैनक उतारल करू
सजि गुजि नित दिन दहाड़े अहाँ
अँतरी ने लोकक ससारल करू
बड मारुक ई केश कारी सघन
फन्दा नै एकर पसारल करू
नेहक टा राजीव मारल मतल
बिसरा नै प्रियतम गछारल करू
222 221 2212
@ राजीव रंजन मिश्र
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