गजल- ११७
सभकँ धवल बसन छै राजनितक मैदानमे
जमिकँ मुदा मगन सभ चोरि गबन आराममे
जमिकँ मुदा मगन सभ चोरि गबन आराममे
बात करब ग' ककरा संग कखन कोना कहू
सभ त' बझल पड़ल नित चाम सुनर आ जाममे
सभ त' बझल पड़ल नित चाम सुनर आ जाममे
क्यउ चलल जँ लोकक नब्ज पकड़ि नेता बनल
वोट पड़ल बनल मंत्री ल' द' पसरल शानमे
वोट पड़ल बनल मंत्री ल' द' पसरल शानमे
मोन रहल कहाँ ककरो त' पढ़ल खाता बही
होश कहाँ क' घूरल खेत नहर खलिहानमे
होश कहाँ क' घूरल खेत नहर खलिहानमे
कोन हबा चलल देखू त' कनी राजीव ई
लोक घिना घिना नित फाटि रहल दिअमानमे
लोक घिना घिना नित फाटि रहल दिअमानमे
२११२ १२२ २११२ २२१२
@ राजीव रंजन मिश्र
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