गजल-१२०
खन खन मोन आकुल भेल अछि,विर्रोसँ लरि-जुइझ रहल भाइ बंधु लेल भगवानसँ आर्तनाद करएत हमर प्रार्थना …. अकुलाएल मोनक दू आखर,गजलकें रूपमे :
नै दोष मूढ़कें आब गनू
छी हम अबोध अपाटक त' पतित
धरि जाउ कोन दरबार कहू
ई आगि पानि जल मेघ चढ़ल
अधप्राण भेल छी त्रान करू
किछु नब अबस त' गढ़बा क' रहब
ली आइ फेर अवतार बरू
बस एक आस विस्वास अहीँ
राजीव ठाढ़ कर जोरि प्रभू
२२१ २१२२ ११२
@ राजीव रंजन मिश्र
१२.१०.२०१३ राति १०.४५
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