गजल-११६
हम बाटक अनजान पथिक छी
सत नेहक सदिकाल रसिक छी
सत नेहक सदिकाल रसिक छी
जे भेटल से मानि चलल सदिखन
नै खोहिस सरकार अधिक छी
नै खोहिस सरकार अधिक छी
नै हाकिम नै लाट गवर्नर धरि
अपना मोनक ख़ास श्रमिक छी
अपना मोनक ख़ास श्रमिक छी
जे देखल से भाखि चलल सगरो
औ बाबू अहि मे लाज कथिक छी
औ बाबू अहि मे लाज कथिक छी
बुझि राखल राजीव त' जिनगी ई
क्षणभंगुर आ चारि घऱिक छी
क्षणभंगुर आ चारि घऱिक छी
२२२ २२१ १२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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