गजल-१३५
समस्त मित्र बंधुकेँ दीया बातिक हार्दिक मंगल कामनाक संग प्रेषित अछि हमर ई गजल:
साथे साथ रहत ग' दुख सुख
हल्लुक मोन बनाकँ राखब
हल्लुक मोन बनाकँ राखब
निसि वासर त' मनत दिवाली
जा धरि बानि सजाकँ राखब
जा धरि बानि सजाकँ राखब
करनी ऊँच वचनसँ मधुगर
गामक गाम जुराकँ राखब
गामक गाम जुराकँ राखब
बड अनमोल मनुखकँ काया
अनुदिन लाज बचाकँ राखब
अनुदिन लाज बचाकँ राखब
राजीवक त' रहत विनय जे
लचरल गेह उठाकँ राखब
लचरल गेह उठाकँ राखब
2221 12122
@ राजीव रंजन मिश्र
@ राजीव रंजन मिश्र
No comments:
Post a Comment