गजल-१४४
सहजोरकेँ सहकब छजए छैक
कमजोर अनढनकेँ मरए छैक
बेछोह दरदो सभटा सभदिनसँ
पछुऐल सभतरहेँ सहए छैक
अधलाह ओ काजे सदिखन भाइ
जे लोक हरसट्ठे करए छैक
बुधियार लोकक सभटा ऐ ठाँम
बातेसँ मोसल्लम चलए छैक
भागे भरोसे भेटित सभकेँ त'
सुतलासँ ककरा किछु लहए छैक
राजीव मानल टा सनकेँ बात
बपजेठ बढि चढ़ि नित भखए छैक
२२१ २२२ २२२१
@ राजीव रंजन मिश्र
सहजोरकेँ सहकब छजए छैक
कमजोर अनढनकेँ मरए छैक
बेछोह दरदो सभटा सभदिनसँ
पछुऐल सभतरहेँ सहए छैक
अधलाह ओ काजे सदिखन भाइ
जे लोक हरसट्ठे करए छैक
बुधियार लोकक सभटा ऐ ठाँम
बातेसँ मोसल्लम चलए छैक
भागे भरोसे भेटित सभकेँ त'
सुतलासँ ककरा किछु लहए छैक
राजीव मानल टा सनकेँ बात
बपजेठ बढि चढ़ि नित भखए छैक
२२१ २२२ २२२१
@ राजीव रंजन मिश्र
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