गजल-१४६
देहक लहसन आ सम्बन्ध कहियो नै मिटाइ छैक
कतबो चाहब धरि मुइलाक बादो संग जाइ छैक
कतबो चाहब धरि मुइलाक बादो संग जाइ छैक
उनटा सोचक ई अपने सभक फल भेल जे बिसरिकँ
लोकक जिनगीमे देखब त' सभकिछु आइ पाइ छैक
लोकक जिनगीमे देखब त' सभकिछु आइ पाइ छैक
नेहक मूरति छल सभदिनसँ घर घर नारि जाहि ठाम
तहिठाँ कुबिया मारल जा रहल नित माय दाइ छैक
तहिठाँ कुबिया मारल जा रहल नित माय दाइ छैक
अबिते माँतर जे छल जन्म जन्मक बनल भजार
तकरा बिसरा शोणितकेँ पियासल भाइ भाइ छैक
तकरा बिसरा शोणितकेँ पियासल भाइ भाइ छैक
खहरल अपनेमे गुमसुम परल राजीव भोर साँझ
विधना बाजू ने एकर जँ किछु मिरचाइ राइ छैक
विधना बाजू ने एकर जँ किछु मिरचाइ राइ छैक
२२२२ २२२१ २२२१ २१२१
@ राजीव रंजन मिश्र
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