गजल-२१८
देखि अपनकेँ सभ किरदानी चरजा भरिसक बिसरि गेलहुँ हम
फेर गछाड़ल झड़कल सोचक छी अपने आपमे मातल जे
बाटक की कहि किछु औ बाबू खरपा भरिसक बिसरि गेलहुँ हम
हाल बनल अछि एहन सन किछु सभ गामे गाम चौबटियाकेँ
लागि रहल जे घर आंगन दरबज्जा भरिसक बिसरि गेलहुँ हम
साँझ सबेरे बेधल छातीकेँ हम बुझबीह किछु कतबो धरि
आह भरल जे बाजल से सुनि पगहा भरिसक बिसरि गेलहुँ हम
मीत सखामे पटिदारीमे किरिया राजीव एहन देखल
आर तँ आरो अभरन बातक पनहा भरिसक बिसरि गलहुँ हम
२११२२ २२२२ २२२२ १२२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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