गजल-२१५
फरय गामे गाम छै
चढ़ल सभकेँ आँखि पर
पहिल गोपीराम छै
भरल पोरे पोर रस
सुभग तकरे नाम छै
पड़ल गरमी आब बस
कलम गाछी ठाम छै
मतल बेसी पाकि से
खसय बुढ़बा भाम छै
रहत करनी संग टा
कथी काजक चाम छै
हियामे राजीवकेँ
बसल मिथिला धाम छै
१२२२ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र
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