गजल-२११
सभ आगूमे हम बाद रही
धरि अपनामे आजाद रही
धरि अपनामे आजाद रही
ठानी जखने किछु बात प्रभू
बनि अविचल ध्रुव प्रहलाद रही
बनि अविचल ध्रुव प्रहलाद रही
नित भाखी हम मधु गीत गजल
आ साधल टा सुरनाद रही
नै चाही किछुओ आर सदति
सभ देने आशिर्बाद रही
आ साधल टा सुरनाद रही
नै चाही किछुओ आर सदति
सभ देने आशिर्बाद रही
नै अभिलाषा राजीव हियक
जे झूठक बनि अहलाद रही
जे झूठक बनि अहलाद रही
२२२२ २२११२
@ राजीव रंजन मिश्र
@ राजीव रंजन मिश्र
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