गजल-२२०
किए आतुर भ' हारल छी
ककर भेलय ग' सगरो सभ
कथी लै भेल पागल छी
ज़माना संगमे चलतै
जँ खुट्टा ठीक गाड़ल छी
बिना गेने इनारक ल'ग
उचित्ते ने पियासल छी
कनी राजीव झटकारू
कतह सरकार लागल छी
१२२२ १२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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