गजल -१०८
हुनका देखिते किछु फुरा गेल फेरो
सोचल डेग छल डगमगा गेल फेरो
जिनका सौँपि देने रही डोरि मोनक
साँझे राति ओ धरफड़ा गेल फेरो
सोचल डेग छल डगमगा गेल फेरो
जिनका सौँपि देने रही डोरि मोनक
साँझे राति ओ धरफड़ा गेल फेरो
बाटक माँझ कौखन जँ भेटल त' चटदनि
नोरे आँखि छल डबडबा गेल फेरो
नोरे आँखि छल डबडबा गेल फेरो
जिनगी रौद छल छाँह हुनकर त' संगत
डाढल गात हिय छड़पटा गेल फेरो
डाढल गात हिय छड़पटा गेल फेरो
ठानल रोज राजीव सचेतन बनब धरि
भाबावेशमे धुक चुका गेल फेरो
2221 2212 2122
@ राजीव रंजन मिश्र
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