गजल:१११
किछु सोचि बुझि गमबाक लेल धनबाद कोटि कोटि
नै जानि कोना चीर मोन आभार हम जताउ
भाखल हियक पढबाक लेल धनबाद कोटि कोटि
चुपचाप रहि बुधियार बनि रहल छाँटि गप्प बेश
सरकार दम धरबाक लेल धनबाद कोटि कोटि
भाबक भरल दू चारि पाँति बाजल जँ भूल चूक
निष्पक्ष किछु कहबाक लेल धनबाद कोटि कोटि
"राजीव" हारब नै हियाउ ई ठानि हम त' लेल
नित संग रहि चलबाक लेल धनबाद कोटि कोटि
२२१ २२२१ २१२२१ २१२१
@ राजीव रंजन मिश्र
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