गजल -१०२
लाख झाँपब मुदा पसरिते रहत
नै जँ राखब दुरुस्त अपना घरकँ
बाट काटत लुधकि चहटिते रहत
बोल बाजल कखन घुरल छल मुँहक
चान भागक कि नित चमकिते रहत
राति कतबो सघन गहनगर हो
वीर बाती बनल पजरिते रहत
कोन बातक भरोस राजीव छल
लोक मातल मतल बिसरिते रहत
२१२२ १२१ २२१२
@ राजीव रंजन मिश्र
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