गजल-103
सभ जानितो बुझितो लोक मातल भेल
गलती कखन कोनो ठाम रोकल भेल
गलती कखन कोनो ठाम रोकल भेल
जेबाक जकरा छल जाहि रूपे से त'
चलि गेलए नै धरि नाम ओझल भेल
चलि गेलए नै धरि नाम ओझल भेल
छल जीबिते सभटा कष्ट चारू कात
मरलाक बादे ओ आम पाकल भेल
मरलाक बादे ओ आम पाकल भेल
नित मोन कहलक सभ बात खुल्लेआम
सत गप कहाँ धरि खहियारि भाखल भेल
सत गप कहाँ धरि खहियारि भाखल भेल
राजीव धनबादक पात्र छथि ओ लोक
चाहत जिनक सोना छोऱि पीतल भेल
चाहत जिनक सोना छोऱि पीतल भेल
बहरे सलीम - २२१२+२२२१+२२२१
@ राजीव रंजन मिश्र
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