गजल-१०१
बेर काल चुप्प रहब अनढनकँ थिक काज
नेत चोरि घात करत हारब ग' पदबीसँ
नेत चोरि घात करत हारब ग' पदबीसँ
मान कोन बातकँ छी बल कोन सरकार
आइ धरि कि लोक चलल नित आप मरजीसँ
आइ धरि कि लोक चलल नित आप मरजीसँ
अंत खन करेज कहत हमरे त' छल दोष
छोट काज धाज अपन दुख भेल जगतीसँ
छोट काज धाज अपन दुख भेल जगतीसँ
चान सनकँ रूप जँ बुझि राजीव बड भाग
बाज आउ राति दिनक बरबोल कथनीसँ
२१२१ २११२ २२१ २२१
@ राजीव रंजन मिश्र
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