गजल-२४५
अगिला डेग पहिने तारि चलि रहल
अनढन लेल सगरो मारि चलि रहल
अनढन लेल सगरो मारि चलि रहल
ककरा कोन खगता आ कि चाह किछु
पाइन लोक आबक गाड़ि चलि रहल
पाइन लोक आबक गाड़ि चलि रहल
नेहक बाट सभदिन टेढ़ टाढ़ धरि
बेछोहे मतल नर नारि चलि रहल
बेछोहे मतल नर नारि चलि रहल
बोलक नै जकर किछु मोल आइ से
धोती पाग कुरता झाड़ि चलि रहल
धोती पाग कुरता झाड़ि चलि रहल
नै राजीव बेचब मोल सोचकेँ
भन्ने संग किछु दू चारि चलि रहल
भन्ने संग किछु दू चारि चलि रहल
२२२१ २२२१ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र
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