गजल-२५८
गामसँ घुरती काल मोन मन्हुऐल सन लागैत छैक,हमरे टा नै सभकेँ मुदा उपाय किछु नै।
गामसँ घुरती काल मोन मन्हुऐल सन लागैत छैक,हमरे टा नै सभकेँ मुदा उपाय किछु नै।
प्रेषित अछि हमर ई गजल एहने किछु भाबकेँ समेटने :
किछु बात तँ छै ऐ ठाँ बाबू
बड़ मोन लगै ऐ ठाँ बाबू
बड़ मोन लगै ऐ ठाँ बाबू
यौ गाम घरक बाते अलगे
भरि पोखि भरै ऐ ठाँ बाबू
भरि पोखि भरै ऐ ठाँ बाबू
बड़ मोन हकासल जकरो से
किछु काल हँसै ऐ ठाँ बाबू
किछु काल हँसै ऐ ठाँ बाबू
सुख चैन भरल शीतल सुरभित
पुरबाइ बहै ऐ ठाँ बाबू
पुरबाइ बहै ऐ ठाँ बाबू
राजीव बड़ी धरि दुखकेँ गप
नै पेट चलै ऐ ठाँ बाबू
नै पेट चलै ऐ ठाँ बाबू
221 12 2222
@ राजीव रंजन मिश्र
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