गजल-२५२
नेहक छाँहमे मोन जरल नित
जरि मरि आह आ ओह कहल नित
जरि मरि आह आ ओह कहल नित
मारे दर्द बा सुखकेँ कखनो
रहि रहि आँखिकेँ नोर बहल नित
रहि रहि आँखिकेँ नोर बहल नित
सगरो कात ई नेह सिनेहक
मारूक फेरमे लोक मरल नित
मारूक फेरमे लोक मरल नित
धुरफंदीक ई हद्द तँ देखू
जे मारल सए धरि एक गनल नित
जे मारल सए धरि एक गनल नित
अजगुत खेल राजीव ई जिनगी
हारल वैह जे जीत रहल नित
हारल वैह जे जीत रहल नित
२२२१ २२१ १२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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