गजल-२५९
जिनगी बनल तराजू आ लोक बटखऱा छै
ऐ कात छी पड़ल हम चहुँ कात सभ जमा छै
ऐ कात छी पड़ल हम चहुँ कात सभ जमा छै
आवेग मोनकेँ ई के देखि सुनि कँ बुझतै
सभकेँ तँ लागि रहलै सभ बात मसखरा छै
सभकेँ तँ लागि रहलै सभ बात मसखरा छै
सभदिनसँ छी निमाहब यारी बऱी कठिन धरि
तन्नुक हिया तँ हारल आ गेल चरमरा छै
तन्नुक हिया तँ हारल आ गेल चरमरा छै
ककरा कहब कथी जे आ दोष देब कोना
अपने मिजाज तुरछल ई देल जे दगा छै
अपने मिजाज तुरछल ई देल जे दगा छै
राजीव आइ फेरो छी लोहछल कचोटे
क्यौ आबि जे बुझा दित ई कोन बचपना छै
क्यौ आबि जे बुझा दित ई कोन बचपना छै
2212 122 221 2122
@ राजीव रंजन मिश्र
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