गजल-२०८
ओ खनहि तुष्टा आ खनहि रुष्टा छथि
कहबए स्पष्ट आ सरल वक्ता छथि
कहबए स्पष्ट आ सरल वक्ता छथि
के कहत हुनका जे अधिक जुनि बाजू
मग्न अपनेमे ओ महग मुक्ता छथि
मग्न अपनेमे ओ महग मुक्ता छथि
सोह नै नेताकेँ रहल लोकक धरि
दानकेर फेरो थाम्हने बक्सा छथि
दानकेर फेरो थाम्हने बक्सा छथि
गाममे अबिते रस मधुर चूअत आ
बुझि परत जेना वैह टा सुच्चा छथि
बुझि परत जेना वैह टा सुच्चा छथि
मोन अतबे टा कहि रहल राजीवक
साधु बनने की अँइठले जुन्ना छथि
साधु बनने की अँइठले जुन्ना छथि
212 222 12 222
@ राजीव रंजन मिश्र
@ राजीव रंजन मिश्र
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