गजल-१९४
कि संसारमे* सभ जना जरि रहल
ककर आब के किछु जिगेसा करत
धधा आगिमे* महकमा जरि रहल
कथी मोल कनियो* सिनेहक बचल
खसा नोर आँखिक* दिया जरि रहल
गजब बात ई* जे बुझनिहार गुम
बिना बात लै बुरि धहा जरि रहल
पसरि गेल सगरों कुकुरचालि आ
दहेजक गछाड़ल* धिया जरि रहल
असल मारि गूड़क* तँ बुझल धोखरा
कि गरदा* बनल छड़पिटा जरि रहल
दुखक बात ई* आब राजिव जे
जितल दाव से* दस गुना जरि रहल
१२२१ १ १२ १२ २१२
@ राजीव रंजन मिश्र
* चिन्हित शब्द सभमे एक टा दीर्घकेँ,दू गोट हर्स्व मानबाक छूट लेल गेल अछि,सुझाबक अपेक्षा रहत।
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