गजल-४४
फगुआ बरसल बड मिथिला मे
रभसल बहकल चित मिथिला मे
रघुवर खेलथि होरी अहिठाँ
सीता बिहुँसथि नित मिथिला मे
पावन माटिक महिमहिमंडन छै
अन-धन लछमी सभ मिथिला मे
लख चौरासी जोनिक मेला
जनमी धरि हम बस मिथिला मे
"राजीव"क मानब सदिखन धरि
बुधि बल बढबी मिल मिथिला मे
२२२२ २२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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