DASTAN- E-JINDAGI
Monday, March 11, 2013
गजल-३७
की सूतब की जागब हम
जे सोचब से पायब हम
जे भेटत से भोगब तनि
नीकक टा गुण गायब हम
अनका पर ने थोपब सभ
अपनाके नित झारब हम
जौँ सोचल सत मोने नित
तौँ कौखन ने हारब हम
"राजीव"क सक लीखब धरि
घोंकब ने बस लारब हम
२२२ २२२२
@ राजीव रंजन मिश्र
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