Sunday, March 3, 2013


गजल ३५ 

सोचसँ जीतल ई दुनियाँ 
सोचक हारल ई दुनियाँ

सोच उठौलक आ पटकल 
सोच सवारल ई दुनियाँ

सोचिकँ पैलक सभ सभटा 
सोचक मारल ई दुनियाँ 

सोच बनौलक निक बेजा 
सोच निखारल ई दुनियाँ 

सोचल गौतम तैँ जानू 
अंककँ जानल  दुनियाँ 

सोचक बाबैत राम छला 
कृष्णकँ चिन्हल ई दुनियाँ 

सोचकँ अप्पन शान चढा 
लोक पछारल ई दुनियाँ  

सभ कहथि सोचू जुनि यौ
सोच बिसारल ई दुनियाँ 

सोच छोड़िकँ सभ तरहे 
हाथ पसारल ई दुनियाँ

सोचल बेसी आ करनी 
किछु ने मानल ई दुनियाँ

"राजीव"क बुझने तौँ बस 
सोचक डाहल ई दुनियाँ 

२११ २२ २२२ 
@राजीव रंजन मिश्र 





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